इम्यून थ्रोम्बोसाइटोपेनिक पुरपुरा (आईटीपी)

इम्यून थ्रोम्बोसाइटोपेनिक पुरपुरा (आईटीपी) किस प्रकार की बीमारी है ?

इम्यून थ्रोम्बोसाइटोपेनिक पुरपुरा (आईटीपी) एक दुर्लभ रक्तस्राव (ब्लीडिंग) विकार/रोग है जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अपने ही रक्त में मौजूद प्लेटलेट्स को नष्ट करता है फलस्वरूप शरीर में प्लेटलेट की कमी हो जाती है।

इसे अगर और विस्तृत में जाने तो यह कहा जा सकता है की – इम्यून थ्रोम्बोसाइटोपेनिक पुरपुरा (आईटीपी) एक ऑटोइम्यून रोग है। ऑटोइम्यून (रोग) विकारों में आपका शरीर एंटीबॉडी नामक प्रोटीन बनाता है जो आपके शरीर के हीं दूसरे हिस्से को नुकसान पहुंचाता है। आईटीपी में प्लेटलेट्स के खिलाफ एंटीबॉडीज बनाए जाते हैं जो अपने ही रक्त में मौजूद प्लेटलेट्स को नष्ट करता है

प्लेटलेट्स क्या हैं?

तीन प्रकार की रक्त कोशिकाओं में से एक प्लेटलेट्स हैं। प्लेटलेट्स छोटे और चिपचिपे होते हैं और उनका काम चोट लगने के बाद रक्तस्राव को रोकना है। प्लेटलेट्स, लाल और सफेद रक्त कोशिकाओं की तरह, अस्थि मज्जा में बनते हैं।

खून के सैंपल में सामान्य प्लेटलेट काउंट 150 से 400 x 109/ लीटर के बीच होता है, 150 x 109/ लीटर सेकम प्लेटलेट काउंट को ‘थ्रोम्बोसाइटोपेनिया’ कहा जाता है।

थ्रोम्बोसाइटोपेनिया (प्लेटलेट की कमी) के गंभीरता के तीन स्तर होते हैं – यह हल्के स्तर से गंभीर स्तर तक हो सकता है। यह आपके रक्त में प्लेटलेट्स की संख्या पर निर्भर करता है।

थ्रोम्बोसाइटोपेनिया की गंभीरता तीन स्तर होते हैं –

  • [1] हल्का  (प्लेटलेट गिनती 100,000 से 150,000 /microL)
  • [2] मध्यम (50,000 से 99,000 / microL)
  • [3] गंभीर (50,000 से भी कम / microL)

बच्चों में आईटीपी कितना आम है?
आईटीपी, प्रत्येक 100,000 बच्चों में से लगभग 2 से 5 में होती है। यह 5 या 6 साल की उम्र के आसपास के बच्चों में सबसे आम है, लेकिन यह किसी भी उम्र में हो सकता है।

लक्षण क्या हैं?

अधिकांश रोगियों में कोई लक्षण नहीं होते – ऐसे लोगों का प्लेटलेट काउंट 50000 से 1 लाख (50 – 100 ) के बिच होता है।

जो लोग लक्षणों का विकास करते हैं, उनमें प्लेटलेट काउंट 50000 (50 x 109/लीटर) से कम होता है और अधिकांश मामलों में प्लेटलेट काउंट 20000 (20 x 109/लीटर) से कम होता है

लक्षण अलग-अलग होते हैं और आमतौर पर इसमें हलके से चोट पे ही शरीर पे छोटे या बड़े काले धब्बे पद जाते हैं (पेटीचिया)। नाक से ब्लीडिंग का होना, काले मुंह के छाले, महिलाओं में पीरियड के समय ज्यादा ब्लीडिंग का होना – ये सब प्लेटलेट की कमी के वजह से हो सकते हैं।

कभी-कभी, यह गंभीर रक्तस्राव/ ब्लीडिंग का कारण बनता है जिसके लिए आपातकालीन उपचार की आवश्यकता भी पड़ सकती है।

आईटीपी का सत्यापन कैसे किया जाता है?

आईटीपी का पता आमतौर पर एक रक्त परीक्षण का उपयोग करके लगाया जाता है जिसे पूर्ण रक्त गणना (सी बी सी ) कहा जाता है। यदि लाल खून और सफ़ेद खून की मात्रा सामान्य होती है और केवल प्लेटलेट की कमी होती है तो बच्चो में आमतौर पे बोन मारो की जांच नहीं करते। अधिकांश व्यस्क मरीजों में सी बी सी के साथ साथ बोन मेरो की जांच भी की जाती है क्यूंकि व्यस्क मरीजों में प्लेटलेट कम होने के बोहोत से कारण हो सकते हैं जिनकी जांच के द्वारा पता लगाना आवशयक होता है। कभी कभी पेट का अल्ट्रासाउंड, एल एफ टी और अन्य ऑटोइम्यून रोग से सम्बंधित जांच भी करते हैं।

क्या सभी मरीजों में उपचार की जरुरत पड़ती है ?

बच्चों में बड़ों में
आईटीपी वाले अधिकांश बच्चों की प्लेटलेट काउंट कम होने के बाद भी खतरनाक ब्लीडिंग नहीं होती है।

इलाज के बिना भी ज्यादातर बच्चों का प्लेटलेट काउंट 20000 (20 x109/ लीटर ) से ज्यादा 5 दिनों के भीतर हो जाता है और छह महीने तक अधिकांश बच्चों का प्लेटलेट काउंट सामान्य हो जाता है।

अधिकांश बच्चों को किसी भी उपचार की आवश्यकता नहीं होती है, बच्चो में इस बीमारी का उपचार तभी करते हैं जब उन्हें गंभीर रक्तस्राव/ब्लीडिंग हो रहा हो।

यदि एक आंकड़ा देखा जाये तो 10 प्रभावित बच्चों में से लगभग 1 या 2 हीं बच्चो में प्लेटलेट का स्तर 6 महीने बाद सामान्य नहीं होता है। इसे तब क्रोनिक आईटीपी कहा जाता है। इस स्थिति में भी इलाज की जरुरत पड़ सकती है।

अधिकांश व्यस्क मरीजों में इसका इलाज करना पड़ता है खासतौर पे जब कोई गंभीर ब्लीडिंग की समस्या हो या फिर प्लेटलेट काउंट 30000 से कम हो.

बच्चो के विपरीत, व्यस्क मरीजों में यह बीमारी बिना इलाज के ठीक नहीं होती इसलिए अधिकांश व्यस्क मरीजों में इसका इलाज करते हैं।

इस तरह यह समझा जा सकता है की अधिकांश व्यस्क मरीजों में इसका इलाज करते हैं और इलाज के बाद भी कई मरीजों में प्लेटलेट का स्तर 6 महीने बाद सामान्य नहीं होता है। इसे तब क्रोनिक आईटीपी कहा जाता है।

व्यस्क मरीजों में आईटीपी के साथ साथ और दूसरे प्रकार के ऑटोइम्यून रोग भी एक हि मरीज में होने की संभावना भी होती है जैसे की – ऑटोइम्यून हेमोलिटिक एनीमिया, ऑटोइम्यून थाइरोइड रोग, ऐस एल ई इत्यादि।

 

आईटीपी का इलाज कैसे किया जाता है?

यदि प्लेटलेट काउंट बोहोत कम हो और साथ ही गंभीर रूप से ब्लीडिंग हो रहा हो तो तुरंत प्लेटलेट काउंट बढ़ाने के लिए आई वि आई जी (IVIG) का प्रयोग किया जाता है जो की काफी महंगा होता है। इस काम के लिए एंटी डी या फिर हाई डोज़ स्टेरॉयड का भी प्रयोग किया जाता है।
ध्यान देने वाली बात यह है की आईटीपी के मरीजों में प्लेटलेट चढ़ाने का कोई विशेष लाभ नै होता है क्यूंकि शरीर में मौजूद एंटीबाडी बहार से दिए जाने वाले प्लेटलेट को भी तुरंत नष्ट कर देते हैं।

यदि इलाज में तुरंत प्लेटलेट बढ़ने की जरुरत नहीं है तो सामान्य तौर पे कुछ दवाइयों के माध्यम से इसका इलाज किया जाता है जैसे की – स्टेरॉयड, रेवोलेड, रोमिपोल्सिम, रिटुक्सीमैब इत्यादि।

यदि इन दवाईयों से प्लेटलेट काउंट में सुधर नहीं होता तो कभी कभी तिल्ली /स्प्लीन को ऑपरेशन के माध्यम से काट के हटा दिया जाता है। आईटीपी में अधिकांश प्लेटलेट्स तिल्ली में नष्ट हो जाते हैं। तिल्ली निकालने (स्प्लेनेक्टोमी) से अक्सर प्लेटलेट काउंट बढ़ जाता है। 

इलाज के दौरान मैं और क्या कर सकता हुँ?

एस्पिरिन, इबुप्रोफेन या हर्बल दवा जैसी दवाओं से बचना चाहिए जो ब्लीडिंग को बढ़ावा दे सकते हैं।
डॉक्टर और दंत चिकित्सक को किसी भी ऑपरेशन के पहले यह जरूर बताएं की आपका प्लेटलेट काउंट कम रहता है

पपीता का पत्ता, कीवी फल या फिर बकरी का दूध का सेवन करने से प्लेटलेट काउंट बढ़ता है क्या ?

यह एक अवधारणा बन गयी है लेकिन इसका कोई प्रमाण नहीं है की इनसे प्लेटलेट काउंट बढ़ता है हलाकि इनको खाने से कोई नुकसान भी नहीं है इसलिए अगर आप लेना चाहते हैं तो ले सकते हैं।

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