लिम्फोमा क्या होता है ?
लिम्फोमा एक प्रकार का ब्लड कैंसर है जो की लिम्फ प्रणाली की कोशिकाओं (लिंफोसाइट्स) में शुरू होता है और आमतौर पर लिम्फ नोड्स में होता है जिससे की लिम्फ नोड्स में सूजन आ जाती है या फिर गांठ बन जाता है।
लिम्फ प्रणाली पूरे शरीर में लिंफोसाइट्स नामक संक्रमण से लड़ने वाली सफेद रक्त कोशिकाओं का भंडार होता है और जरुरत पड़ने पर इनको स्थानांतरित करता है।
ये लिंफोसाइट्स नामक कोशिकाएं मुख्यतः लिम्फ नोड्स, बोन मैरो, स्प्लीन और थायमस में उपस्थित होने के साथ साथ शरीर के अन्य भाग जैसे की पेट, आंत और फेफड़ो में भी होते हैं।
लिंफोमा के कितने प्रकार होते हैं ?
मुख्यतः लिंफोमा को दो भाग में बाटा जाता है :-
[1] हॉजकिन लिंफोमा
[2] नॉन-हॉजकिन-लिंफोमा
नॉन-हॉजकिन-लिंफोमा हॉजकिन लिंफोमा को छोड़कर सभी प्रकार के बाकी लिंफोमा के लिए एक नाम है.
नॉन-हॉजकिन-लिंफोमा भी दो प्रकार के हो सकते हैं:-
[1] बी – नॉन-हॉजकिन-लिंफोमा
[2] टी – नॉन-हॉजकिन-लिंफोमा
लिंफोमा के प्रकार का पता बीईओप्सी नमक जाँच से ही होती है।
हॉजकिन लिंफोमा से कौन प्रभावित हो सकते है ?
हॉजकिन लिंफोमा बच्चों और वयस्कों दोनों में हो सकता है, लेकिन यह वयस्कों में सबसे अधिक पाया जाता है। यह सबसे अधिक है 15 से 35 साल के बीच के युवा वयस्कों में और फिर 65 -80 वर्ष की आयु के पुराने वयस्कों में आम है।
हॉजकिन लिंफोमा का क्या कारण है?
ज्यादातर मामलों में, हम वास्तव में नहीं जानते हैं कि लिम्फोमा का क्या कारण है। आप किसी और से लिम्फोमा नहीं पकड़ सकते और आप इसे किसी और को नहीं दे सकते। कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों में लिंफोमा होने की संभावना ज्यादा होती है और कुछ वायरल संक्रमण को भी लिंफोमा का कारण बताया जाता है।
ऐसे कोण से लक्षण हैं जो लिंफोमा होने की संभावना को उजागर करते हैं ?
लिम्फोमा के लक्षण वैसे तो आसानी से नजर नहीं आते, लेकिन फिर भी कुछ संकेत हैं जिनकी मदद से इसके बारे में आसानी से जाना जा सकता है। जैसे कि:-
- लिम्फ नोड्स में सूजन (गले और कांख में गिल्टी का होना)
- हल्का बुखार का रहना और रात में सोते वक्त अत्यधिक पसीना आना
- थकान और अचानक ही वजन कम हो जाना
- ऊपर लिखे समस्यायों के साथ साथ अत्यधिक खुजली का होना
नोट: इनमें से कोई लक्षण दिखे तो हल्के में न लें और तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
इनके अलावा भी कई और लक्षण हो सकते है जो की शरीर के किस भाग में गिल्टी बन रही है उसपे निर्भर करती है।
इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए की गले में गिल्टी की समस्या कई प्रकार के इन्फेक्शन्स में भी हो सकती है जैसे की टी बी और बिना बीईओप्सी के इनमे अंतर करना संभव नहीं होता। कई बार बिना बीओप्सी किये बिना ही गले में गिल्टी को देख कर टी बी की दवाई दे दी जाती है जो की गलत है। बीईओप्सी जरुरी होता है ऐसे केसेस में। यदि आपकी बिना बीईओप्सी नामक जाँच के गले या कांख के गिल्टी के लिए टी बी की दवाई चल रही है और 1 महीने के अंदर कोई भी सुधार नहीं हो रहा तो ब्लड कैंसर विशेषज्ञ से जरूर दिखावें। |
हॉजकिन लिंफोमा की पुष्टि कैसे की जाती है?
यह सबसे महत्वपूर्ण प्रारंभिक चरण है – बायोप्सी के द्वारा लिम्फ नोड (गिल्टी या गाँठ ) की जाँच पैथोलोजिस्ट द्वारा की जाती है और हॉजकिन लिंफोमा होने की पुष्टि की जाती है। इस प्रक्रिया में 3 -7 दिन का समय लग जाता है।
बायोप्सी के अलावा और कौन सी जांच कराई जाती है और उनका क्या महत्व है ?
[1] सी बी सी, लिवर फंक्शन टेस्ट (एल एफ टी ), किडनी फंक्शन टेस्ट – यह जानने के लिए ब्लड, लिवर और किडनी लिंफोमा से प्रभावित तो नहीं है और कीमोथेरेपी देना सुरक्षित है की नहीं।
नोट करें की इन जांचो में ही – ई एस आर और एल दी एच की जाँच भी होती है जो कैंसर की स्टेजिंग में भी काम आता है।
[2] कीमोथेरेपी शुरू करने से पहले ईसीजी और इकोकार्डियोग्राफी – यह हार्ट सही काम कर रहा है की नहीं उसके लिए ताकि कीमोथेरेपी के बारे में महत्वपूर्ण निर्णय लिया जा सके।
[3] स्टेजिंग यानि की लिंफोमा किस स्टेज में है – इसके लिए पेट सी टी (PET/CT) नाम की एक जांच कराई जाती है जो की महँगी होती है (8000 से 20000 रूपए) – यह जांच इसलिए भी जरुरी है की लिंफोमा के प्रकार के साथ साथ स्टेज पर भी यह निर्भर करता है की किस प्रकार की और कितनी तेज गति की कीमोथेरेपी दी जानी चाहिए।
नोट: हॉजकिन लिंफोमा में पेट सी टी (PET/CT) जाँच के बाद बोन मेरो जाँच करने की जरुरत आम तौर पे नहीं पड़ती है।
नोट: पेट सी टी (PET/CT) जाँच यदि उपलब्ध नहीं है तो बोन मेरो जाँच के साथ CECT (सी टी) स्कैन की जाँच से काम चलाया जाता है
[4] वायरल मार्कर्स जैसे की हेपेटाइटिस और एच् आई वि
[5] हॉजकिन लिंफोमा में दी जाने वाली एक विशेष प्रकार के कीमो के पहले फेफड़ो की सांस लेने की छमता को भी जांच लिया जाता है जिसे की – पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट (पी ऍफ़ टी) कहा जाता है।
हॉजकिन लिंफोमा के इलाज के बारे में कुछ बतावें और यह कितने प्रतिशत मरीजों में इसके ठीक होने की संभावना होती है ?
हॉजकिन लिंफोमा के लिए मुख्य उपचार अकेले कीमोथेरेपी या फिर कुछ परिस्थितियों में कीमोथेरेपी के बाद रेडियोथेरेपी हैं। कुल मिलाकर, हॉजकिन लिम्फोमा के आज के दौर में उपलब्ध उपचार अत्यधिक प्रभावी है और इलाज के बाद 85 – 90% मरीजों में बीमारी ठीक हो जाती है और वो लम्बा स्वस्थ जीवन जी पाते हैं।
नोट : आमतौर पर लिंफोमा का इलाज करने के लिए सर्जरी का उपयोग नहीं किया जाता है
उपचार के विकल्प कई कारकों पर निर्भर करते हैं, जिनमें शामिल हैं: लिंफोमा का प्रकार, स्टेज(सीमा), बीमारी भारी है या नहीं, बीमारी क्या लक्षण पैदा कर रही है, व्यक्ति की आयु और उसका संपूर्ण स्वास्थ्य। आम तौर पर इलाज कीमोथेरेपी के साथ शुरू की जाती है और आमतौर पर 4 से 6 साइकल्स के लिए एबीवीडी नाम का केमो दिया जाता है और जरुरत पड़ने पड़ रेडियोथेरेपी (सिकाई) भी की जाती है। पेट सी टी (PET/CT) स्कैन जाँच अक्सर कीमो के दो साइकल्स के बाद किया जाता है ताकि यह देखा जा सके कि और कितना केमो या फिर रेडियोथेरेपी देने की आवश्यकता है।
ABVD (एबीवीडी) कीमोथेरेपी के बारे में कुछ जानकारी दें ?
ABVD (एबीवीडी) एक कीमोथेरेपी है जिसे हॉजकिन लिंफोमा के उपचार में इस्तेमाल किया जाता है, इसमें 4 कीमोथेरेपी दवा शामिल हैं:
- एड्रीमाइसिन (जिसे डॉक्सोरूबिसिन के रूप में भी जाना जाता है)
- बिलिओमिसिन
- विनब्लास्टिन
- डाकारबाज़ीन
यह चारो दवा हर 15 दिन में लगती है और 30 दिन का 1 साइकिल होता है अतः प्रत्येक साइकिल में 2 बार केमो लगता है।