CLL-क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया

क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया क्या है?

क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया एक प्रकार का रक्त कैंसर है जिसमें अस्थि मज्जा बहुत अधिक लिम्फोसाइट्स (एक प्रकार का सफेद रक्त कोशिका) बनाता है। क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया (सीएलएल) धीमी गति से बढ़ने वाला ल्यूकेमिया (रक्त कैंसर) का एक प्रकार है। 

सामान्य परिस्थितियों में लिम्फोसाइट्स (सफेद रक्त कोशिका) हमारे शरीर को संक्रमण और बीमारी से बचाने में मदद करते हैं।

सीएलएल आमतौर पर धीरे-धीरे विकसित होता है और कई महीनों और वर्षों में धीरे-धीरे बढ़ता है। इस बात पर जोर देना महत्वपूर्ण है कि कई लोगों मे सीएलएल कई महीनों और वर्षों तक स्थिर रहता है और उनकी जीवनशैली या सामान्य स्वास्थ्य पर कोई प्रभाव नहीं डालता है। सीएलएल से पीड़ित लगभग 30-40% लोगों को अपनी बीमारी के लिए किसी भी उपचार की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

सीएलएल से कौन प्रभावित होते हैं ?

सीएलएल विकसित होने का जोखिम उम्र के साथ बढ़ता है। सभी नए मामलों में से लगभग 80% लोग 60 वर्ष से अधिक आयु के होते हैं। सीएलएल 40 वर्ष से कम आयु के लोगों में दुर्लभ है और महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक बार होता है।

सीएलएल होने का क्या कारण है?

सीएलएल के कारण अज्ञात रहते हैं लेकिन ऐसा माना जाता है कि यह एक या अधिक रक्त कोशिका के विकास को नियंत्रित करने वाले जीनों को नुकसान पहुंचने से होता है। यह संक्रामक नहीं है और एक दूसरे को छूने से या साथ रहना से नहीं फैलता।
वर्तमान में, केवल सीएलएल के पारिवारिक इतिहास के कारण सीएलएल के लिए स्क्रीनिंग की जरुरत नहीं होती है ।

सीएलएल के लक्षण क्या हैं?

[1] क्योंकि सीएलएल धीरे-धीरे विकसित होता है, बहुत से लोगों में कोई लक्षण नहीं होते हैं, विशेष रूप से प्रारंभिक अवस्था में और रोग का पता नियमित रक्त परीक्षण के दौरान चल जाता है।

[2] अन्य लोगों में कुछ परेशान करने वाले लक्षण हो सकते हैं जिसको दिखने के लिए वो डॉक्टर के पास जाते हैं और तब बीमारी का पता चलता है। अस्थि मज्जा और रक्त में असामान्य रक्त कोशिकाओं की बढ़ती संख्या और सामान्य रक्त कोशिकाओं की घटती संख्या से लक्षण उत्पन्न होते हैं।
संभावित लक्षणों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं:
(क) एनीमिया, लाल कोशिकाओं की कमी के कारण लगातार थकान, चक्कर आना, पीलापन या सांस की तकलीफ
(ख) ब्लीडिंग के लक्षण जैसे चमड़ी पे लाल या काले धब्बे पड़ना
(ग) सामान्य श्वेत रक्त कोशिकाओं की कमी के कारण बार-बार संक्रमण का होना
(घ) बढ़े हुए प्लीहा (स्प्लीन या तिल्ली) के कारण बाईं ओर की पसलियों के नीचे दर्द या बेचैनी
(ङ) गर्दन में, बाहों के नीचे या आपकी कमर में लिम्फ नोड्स (ग्रंथियों) की दर्द रहित सूजन।
(च) रात में अत्यधिक पसीना आना या फिर अकारण वजन का कम होना।

सीएलएल का इलाज कैसे किया जाता है?

आपकी बीमारी के लिए चुना गया उपचार आपकी बीमारी के चरण (स्टेज) सहित कई अन्य परिस्थितियों पर निर्भर करता है जैसे की – आपको बीमारी के लक्षण है या नहीं, बीमारी कितनी तेजी से बढ़ रही है,आपकी उम्र कितनी है और आपका सामान्य स्वास्थ्य कैसा रहता है।

स्टेजिंग सिस्टम का उपयोग करके डॉक्टर आपके सीएलएल का स्टेज (चरण) पता लगाते हैं और उसके अनुसार ही आपका इलाज निर्धारित करते हैं।
यह बात समझना बहुत जरुरी है की :-

[1] सीएलएल वाले बहुत से लोगों को विशेष रूप से बीमारी के प्रारंभिक चरण में कोई लक्षण नहीं होते हैं और उन्हें किसी भी उपचार की आवश्यकता नहीं होती है। समय से पहले उपचार करने का कोई विशेष फायदा नहीं होता है। इसलिए इस स्थिति में डॉक्टर समय समय पे (2 से 3 महीने में) बुला के आपके स्वास्थ्य की सावधानीपूर्वक निगरानी करते हैं और आपकी ब्लड की कुछ जांच करा के देखते हैं और इसी आधार पे वो तय करते हैं की आपको इलाज की अभी जरुरत है की नहीं। 

सीएलएल वाले बहुत से लोग (30 – 50 %) बिना किसी समस्या के वर्षों तक बीमारी से पीड़ित रह सकते हैं और इनको कभी भी किसी उपचार की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

सीएलएल में आम तौर पे इलाज तभी किया जाता है जब :
(क) हीमोग्लोबिन 10 से कम रहने लगे
(ख) प्लेटलेट 1 लाख से काम रहने लगे
(ग) शरीर में तिल्ली या लिम्फ नोड (गांठ) इतनी बड़ी हो जाये की समस्या होने लगे
ध्यान रहे की केवल टीएलसी (सफ़ेद खून) के बढे होने पर इलाज की जरुरत नहीं पड़ती।

[2] इसलिए हम यह कह सकते हैं की उपचार आमतौर पर केवल तभी शुरू होता है जब रोग बढ़ना शुरू हो जाता है, या परेशानी के लक्षण पैदा करता है।

बीमारी को सिद्ध करने के लिए और इलाज निर्धारित करने के लिए कौन सी जांचें कराई जाती है ?
ब्लड की जांच (हेमोग्राम + बायोकेमिस्ट्री), बोन मेरो की जाँच , साइटोजेनेटिक्स , फ्लोसायटोमेट्री और इमेजिंग (सी टी स्कैन या पेट स्कैन) और जरुरत पड़ने पे गांठ की बीओप्सी।

सीएलएल का इलाज कैसे होता है ?
इलाज की विधि बीमारी के स्टेज और साइटोजेनेटिक्स की जांच के आधार पे होता है। आम तौर पे कीमोथेरेपी के द्वारा इसका इलाज किया जाता है।

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